Sunday, March 11, 2018

रिश्ते : जाने अनजाने

आँख खुली जब सामने था वो, चेहरा एक सुहाना सा
था कुछ मुरझाया हुआ सा , फिर भी था निराला सा
आँचल से था अमृत झरता, मधु के जैसा निर्मल सा
रिश्ता ममता का बन गया , गंगा जैसा पावन सा ||

यौवन की जब आयी बेला, दिल था हुआ पतंगा सा
कली कली तब भटक रहा था, किसी आवारा भँवरे सा
आँख लड़ी जब उस चेहरे से , वीणा के जैसा नाद हुआ
रिश्ता बंधा सात जनम का , कुछ खट्टा कुछ मीठा सा ||

नीरस सी इस दिनचर्या में, वो प्यारी गुड मॉर्निंग सी
वाणी उनकी मिश्री जैसी, बातें लगे कविता सी
होली पे  उन गोरे गलों पर, रंग मलने की हसरत सा
रिश्ता ये पड़ोस की भाभी से, नटखट और रंगीला सा ||

उसका यूँ पीछे से गुजरना, किसी रेल के इंजन सा,
उन चंचल चितवन नैनो से, हज़ार ख्वाहिशें कहने सा
उस हृदय हिरणी के संग , बैठ कॉफ़ी पीने सा
रिश्ता ऑफिस की उस कर्मी से, अनजाना अनचाहा सा ||

5 comments:

Unknown said...

Kya bat he Yar.. Very nice...



Unknown said...

Good one ����

Anonymous said...

मेरे भंवरे यह बताओ, पड़ोस की भाभी के साथ की जो नटखट हसरतें थी वह शादी के पहले की थी या शादी के बाद की :) - अभिनय

saurabh tripathi said...

Very innocent feelings are expressed here, great work :-)

Unknown said...

Very good