Monday, September 10, 2018

Monsoon Milan

श्याम वर्ण मेघा जब छाए
नाचे मोर चातक हरशाये
प्रेम पिपासी धरा से मिलने
मेघ! नीर बन दौड़े आए |

धरती ने सोलह श्रृंगार किया
हरित वस्त्र फिर धार लिया
सजना से मिलने को हो तत्पर
मिलन ऋतु का आभार किया |

जब प्रेम मिलन साकार हुआ
नव जीवन का संचार हुआ
स्फुटित होते नव अंकुरों से
निश्छल प्रेम चरितार्थ हुआ |

Monday, July 9, 2018

Kah Mukri Challenge

कह-मुकरियाँ या मुकरियाँ  का सीधा सा अर्थ होता है कही हुई बातों से मुकर जाना. और इस बंद में होता भी यही है.  ये चार पंक्तियों का बंद होती हैं, जिसमें पहली तीन पंक्तियाँ किसी संदर्भ या वर्णन को प्रस्तुत करती हैं,  परन्तु स्पष्ट कुछ भी नहीं होता. चौथी पंक्ति दो वाक्य-भागों में विभक्त हुआ करती हैं. पहला वाक्य-भाग उस वर्णन या संदर्भ या इंगित को बूझ जाने के क्रम में अपेक्षित प्रश्न-सा होता है,  जबकि दूसरा वाक्य-भाग वर्णनकर्ता का प्रत्युत्तर होता है जो पहले वाक्य-भाग में बूझ गयी संज्ञा से एकदम से अलग हुआ करता है. यानि किसी और संज्ञा को ही उत्तर के रूप में बतलाता है. इस लिहाज से मुकरियाँ  एक तरह से अन्योक्ति हैं. (source here )

कुछ स्व-रचित कह-मुकरियाँ यहाँ प्रेषित है जो की हमारी काव्य पाठ मित्र मंडली "पढ़ने लिखने वाले" की प्रेरणा से लिखी गयी है

उसकी खुशबू , से मन डोले
नैना तरसे , तन हिचकोले
हाथ छूए तो, दिन आफताब
कौन माशूका? ना रे किताब।

जब वो आवे , मन हरशाए
ताज़ी हवा सा, घर महकाए
बचपन का वो, बड़ा त्योहार
कौन दिवाली? नहीं रविवार।

उसकी सबसे, मधुर आवाज़
जब वो बाजे, तो लागे साज़
दौड़ू पीछे, बन मतवाला
कौन वो सजनी? ना कुल्फी वाला।

गरमी में भी, ठंड दिलाए
तन मन पर, अमृत बरसाए
जा कर जहां, हो दिल मस्ती वाला
सजनी की गली? नहीं मधुशाला।

Sunday, March 11, 2018

रिश्ते : जाने अनजाने

आँख खुली जब सामने था वो, चेहरा एक सुहाना सा
था कुछ मुरझाया हुआ सा , फिर भी था निराला सा
आँचल से था अमृत झरता, मधु के जैसा निर्मल सा
रिश्ता ममता का बन गया , गंगा जैसा पावन सा ||

यौवन की जब आयी बेला, दिल था हुआ पतंगा सा
कली कली तब भटक रहा था, किसी आवारा भँवरे सा
आँख लड़ी जब उस चेहरे से , वीणा के जैसा नाद हुआ
रिश्ता बंधा सात जनम का , कुछ खट्टा कुछ मीठा सा ||

नीरस सी इस दिनचर्या में, वो प्यारी गुड मॉर्निंग सी
वाणी उनकी मिश्री जैसी, बातें लगे कविता सी
होली पे  उन गोरे गलों पर, रंग मलने की हसरत सा
रिश्ता ये पड़ोस की भाभी से, नटखट और रंगीला सा ||

उसका यूँ पीछे से गुजरना, किसी रेल के इंजन सा,
उन चंचल चितवन नैनो से, हज़ार ख्वाहिशें कहने सा
उस हृदय हिरणी के संग , बैठ कॉफ़ी पीने सा
रिश्ता ऑफिस की उस कर्मी से, अनजाना अनचाहा सा ||

Sunday, January 14, 2018

शक्ति

मैं शक्ति हूँ मैं शक्ति हूँ

मैं सृजन का गीत हूँ
मृत्यु का रुदन भी हूँ
हूँ गृहस्थ की शान मैं
अघोरी का अभिमान भी हूँ

 मैं शक्ति हूँ मैं शक्ति हूँ

मैं साम हूँ मैं दाम हूँ
मैं दण्ड हूँ और भेद हूँ
मैं काल का भी काल हूँ
रौद्र हूँ महा विकराल हूँ

मैं शक्ति हूँ मैं शक्ति हूँ

मैं सौम्य हूँ तो अम्बा हूँ
पोषण करती अन्नपूर्णा हूँ
जो रुष्ठ हुई तो काली हूँ
संहार रूपिणी चामुंडा हूँ

मैं शक्ति हूँ मैं शक्ति हूँ

ब्रह्मा का पूर्ण ज्ञान हूँ मैं
श्री हरी की सारी माया हूँ
शिव का तांडव नृत्य हूँ मैं
संपूर्ण विश्व की काया हूँ

मैं शक्ति हूँ मैं शक्ति हूँ